बज़्म अज़ीज़ का सालाना मसालमा बज़्म के बानी व सदर हाजी नसीर अंसारी के आवास पर आयोजित हुआ

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बाराबंकी। बज़्म अज़ीज़ का सालाना मसालमा बज़्म के बानी व सदर हाजी नसीर अंसारी के आवास पर आयोजित हुआ

रिपोर्टर रहमान अली खान

। जिसकी सदारत सुहैब हुसैन वारसी देवा शरीफ़ ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर नदीम वारसी, जाबिर वारसी और मुख़्तार फ़ारूक़ी मौजूद रहे,निज़ामत हुज़ैल लालपुरी ने की। इस बार मिसरा तरह दो दिए गए थे। जहां में कोई साबिर हुसैन सा ना हुआ, और दूसरा चले हैं अहले हरम दीन की बक़ा के लिए।
पसंद किए जाने वाले अशआर इस तरह से हैं।


हाजी नसीर अंसारी -किसी ने सब्र-ओ- तहम्मुल की इंतहा कर दी। के सब कुछ अपना लुटाकर भी ग़मज़दह ना हुआ।।
सग़ीर नूरी-कभी भी बाद-ओ- इरफ़ान उसे अदा ना हुआ। जो अहले बैत की अज़मत से आशना ना हुआ।।
हुज़ैल लालपुरी- मेरी नज़र में वो इंसा नहीं है पत्थर है।जो ज़िक्रे कर्बला सुनके ग़मज़दह ना हुआ।।
अज़ीम मशायक़ी- मलाल आज भी मुझको है अपने सजदों पर। हुसैन की तरह सजदा कोई अदा ना हुआ।।
अदील मंसूरी – निसार कर दे जो सब कुछ रहे इलाही में। सिवा हुसैन के दुनिया में दूसरा ना हुआ।।
मुख़्तार फ़ारूक़ी – जिसे भी जाना हो ऐलान था चला जाए। मगर क़सम है कोई आपसे जुदा ना हुआ।।
हैदर मसौलवी- अली के लाल को तूने शहीद कर डाला। ख़ुदा का ख़ौफ़ तुझे शिम्र क्या ज़रा ना हुआ।।
मिस्टर अमेठवी- क़सम ख़ुदा की है मिस्टर जो कोई सच पूछे। सितम नबी के नवासों पे कौन सा ना हुआ।।
मास्टर इरफ़ान अंसारी -जो मारने पे तुले थे वो मर गए कब के। मेरे हुसैन हैं ज़िंदा सदा -सदा के लिए।।
डॉक्टर रेहान अलवी – दिलों में फ़िक्र ये लेकर के हक़ रहे क़ायम। चले हैं अहले हरम दीन की बक़ा के लिए।।
आसी चौखंडवी- क़दम- क़दम पे क़दम बोसी हो रही है ज़मीं। चले हैं अहले हरम दीन की बक़ा के लिए।।
असर सैदनपुरी- ग़में हुसैन में रोएं ना क्यों जहां वाले। रसूल रोए हैं जब इब्ने मुर्तज़ा के लिए।।
शम्स ज़करयावी – बताओ कुछ तो अरे क़ोफ़ियो ख़ुदा के लिए। सता रहे हो हमें कौन सी ख़ता के लिए।।
बशर मसौलवी – उसे नबी की शफ़ाअत नसीब क्या होगी। जो बदनसीब यहां पर हुसैन का ना हुआ।।
सरवर किन्तूरी – वो बदनसीब है हम तो यही समझते हैं। जिसे नसीब शहे दीं का नक़्शे पा ना हुआ।।
तालिब आलापुरी- क़सम है रोज़े क़यामत अलावा दोज़ख़ के। कहीं ठिकाना नहीं शिम्र बेहया के लिए।।
इनके अलावा सबा जहांगीराबादी ने भी अपना कलाम पेश किया। आख़िर में साहबेख़ाना हाजी नसीर अंसारी ने सभी का शुक्रिया अदा करते हुए ऐलान किया कि आइंदा माह का मुशायरा हम्द पर होगा।जिसका मिसरा तरह “है या रब फ़ैज़ फ़ैज़ी आम तेरा” आम क़ाफ़िया और तेरा रदीफ़ है।

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