बज़्म अज़ीज़ की मासिक तरही नशिस्त बज़्म के सदर हाजी नसीर अंसारी के आवास पर आयोजित

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बज़्म अज़ीज़ की मासिक तरही नशिस्त बज़्म के सदर हाजी नसीर अंसारी के आवास पर आयोजित

रिपोर्टर रहमान अली खान

बाराबंकी। () बज़्म अज़ीज़ की मासिक तरही नशिस्त नबी गंज स्थित बज़्म के सदर हाजी नसीर अंसारी के आवास पर आयोजित हुई। जिसकी सदारत एस.एम हैदर साहब ने की।मेहमाने ख़ुसूसी के तौर पर ज़मीर फ़ैज़ी,तुफ़ैल ज़ैदपुरी और अदील मंसूरी मौजूद रहे। नशिस्त से पहले हाजी नसीर अंसारी ने बज़्म के नायब सदर ओहदे के लिए मास्टर इरफ़ान अंसारी को और सेक्रेटरी नशर-ओ अशाअत के लिए डॉक्टर रेहान अलवी के नाम का ऐलान किया। दोनों ओहदेदारों का हाजी नसीर अंसारी,एस.एम हैदर, मोहम्मद असग़र उस्मानी (मोहम्मद मियां),ज़मीर फ़ैज़ी और हुज़ैल लालपुरी वग़ैरह ने फूलों का हार पहनाकर मुबारकबाद दी। इस बार हम्द का मिसरा “है या रब फ़ैज़ फ़ैज़े आम तेरा” पर तमाम शोअरा ने अपने कलाम पेश किए।हुज़ैल लालपुरी की निज़ामत में पढ़े गए पसंदीदा अश्आर आपकी ख़िदमत में पेश हैं।
हाजी नसीर अंसारी- वो भटके राहे हक़ से ग़ैर मुमकिन। जो पी ले मार्फ़त का जाम तेरा।।


ज़मीर फ़ैज़ी- तमन्ना है के देख़ूं धाम तेरा‌। करुं सजदा मैं बा अहराम तेरा।।
मुख़्तार फ़ारूक़ी – मेरा मुंह जबकि इस क़ाबिल नहीं। तो फिर लूं किस तरह से नाम तेरा।।
मास्टर इरफ़ान अंसारी – लगाना है गले दुश्मन को अपने। नबी से ये मिला पैग़ाम तेरा।।
हुज़ैल लालपुरी- रगे जां से भी है नज़दीक तर तू। पता हरगिज़ नहीं गुमनाम तेरा।।
डॉक्टर रेहान अलवी – कुछ इसमें शक नहीं के मसलहत से। नहीं ख़ाली है कोई काम तेरा।।
असलम सैदनपुरी- वही बन्दा है बस नाकाम तेरा। ना ले जो नाम सुब्ह-ओ शाम तेरा।।
असर सैदनपुरी-क़दम उट्ठे हैं लेकर नाम तेरा। सहारा है मुझे हर गाम तेरा।।
अदील मंसूरी – उन्हीं की ज़िन्दगी बस ज़िन्दगी है। जिए हैं जो भी लेके नाम तेरा।।
तुफ़ैल ज़ैदपुरी -जहां सैराब होता जा रहा है। छलकता जा रहा है जाम तेरा।।
शम्स ज़करयावी – तो फिर क्यों ओर किसी के दर पे जाऊं। है जब बिगड़ी बनाना काम तेरा।।
आरिफ़ शहाबपुरी-भला कैसे मैं तेरी हम्द कहता।अगर मिलता नहीं इल्हाम तेरा।।
सरवर किन्तूरी – हंसी कितना है या रब नाम तेरा। करे जो ज़िक्र ख़ास -ओ आम तेरा।।
मिस्टर अमेठवी – है लब पे ज़िक्र सुब्हो शाम तेरा। तू राज़ी हो ना हो ये काम तेरा।।
तालिब आलापुरी- करम है या इलाही आम तेरा। युहीं लेते नहीं सब नाम तेरा।।
हैदर मसौलवी- मिला है मुझको जो इस्लाम तेरा। इलाही सब ये है इनआम तेरा।।
बशर मसौलवी – सख़ी या रब कोइ तुझ सा नहीं। सख़ावत से भरा हर गाम तेरा।।
नज़र मसौलवी- जहां की ख्वाहिशें जिसने भी छोड़ी।उसी को है मिला इनआम तेरा।
रजब मसौलवी- ना रह जाएगी कोई शै जहां की। रहेगा सिर्फ़ बस एक नाम तेरा।।
नशिस्त के आख़िर में बज़्म के जनरल सेक्रेटरी हुज़ैल लालपुरी ने सभी शोअरा और श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया। बज़्म के सदर हाजी नसीर अंसारी ने अगले माह होने वाली नशिस्त के लिए नात का मिसरा “चलो देख आएं गुलज़ार-ए मदीना” देते हुए ऐलान किया कि तारीख़ की इत्तिला बाद में दी जाएगी।

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